पूर्व ओएसडी, मध्य प्रदेश सरकार
महर्षि वाल्मीकि जी रचित रामायण व सन्त शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदासजी कृत श्रीरामचरितमानस ऐसा अनुपम ग्रन्थ है, जिनका पठन तो बहुत लोगों ने किया पर उनमें वर्णित-धर्म, विज्ञान, आध्यात्म, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिषशास्त्र, वास्तुकला, राजनीति व कौटुम्बिक एकता के मंत्र को बहुत कम लोग ही समझ पाए। सम्भवतः यही कारण है कि हम शताब्दियों तक पराधीनता के दंश को झेलने के लिए विवश रहे व उस अवसादकाल में आक्रमणकारियों ने अपनी दुष्टप्रवित्ति व हीनभावना से ग्रस्त मानसिकता के कारण न केवल हमारे इस प्रकार के महान ग्रन्थों को नष्ट कर दिया, अपितु हमारी वैभवशाली संस्कृति व गौरवशाली अतीत को वर्णित करती धरोहरों को भी धूल धूसरित किया, जिनको ध्वस्त नहीं कर पाए- उन पर अपने चिन्ह इस प्रकार प्रकट किए जिससे कि यह भान हो कि इनका निर्माण उन्हीं के द्वारा किया गया। प्रभु श्रीराम जन्मस्थल पर "बाबरी" व ताजमहल इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
सनातन संस्कृति पर जब-जब विपत्ति आई, इतिहास साक्षी है, तब-तब ईश्वर ने अपना प्रतिनिधि "युगप्रवर्तक" के रूप में धरा पर भेजा है। रामराज्य की पुनर्स्थापना के संधिकाल में अनेकों महापुरुषों के साथ ही पूज्य संत श्री श्री 1008 परमहंस स्वामी सांदीपेंद्र महाराज जी भी उसी कड़ी में रामायण रिसर्च काउंसिल के मुख्य मार्गदर्शक के रूप में विद्यमान हैं, उन्हीं के आशीर्वाद व श्रीरामजानकी जी की कृपावृष्टि ने परिषद के भागीरथ कार्य में मुझे भी "संयोजक" के दायित्व निर्वहन का सौभाग्य प्रदान किया है,जो निश्चित ही पूर्वजन्म के पुण्यों का फल है।
काउंसिल के तत्वावधान में देश व समाज के पुनरुत्थान के जो प्रकल्प हैं- सभी के प्रयास से निश्चित ही समाज के सभी वर्ग एकसूत्र में बंधकर उसमें कार्यरत होंगे, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है। रामायण मंच के माध्यम से बच्चों में उच्च संस्कार रोपित होंगे, जो गुरुजन व अग्रजों के प्रति सम्मान भाव रख पारिवारिक एकता को बल प्रदान करेंगे। युवा पीढ़ी को भी भान होगा कि धर्म में राजनीति विष समान है व धर्म विहीन राजनीति दूषित है, तब भ्रष्टाचार पर भी नियंत्रण होगा। भगवती सीता माता की विशाल मूर्ति नारी शक्ति व संस्कारों का स्रोत बनेंगी।
मेरा सभी से अनुरोध है कि अपनी संस्कृति को जीवंत बनाने हेतु इस महानकार्य में पूर्ण समर्पण भाव से जुड़कर अपने कुल को गौरवान्वित करें।
"जय श्री सीताराम जी"
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