(माता बगलामुखी मंदिर प्रांगण, नलखेड़ा, मध्य प्रदेश)
आज के परिवेश में देश में कई सारे सामाजिक एवं धार्मिक संगठन देशहित तथा समाजहित में कार्य कर रही है। ऐसे में विषय है कि रामायण रिसर्च काउंसिल उससे अलग कैसे है ? जब हमने इस संगठन की शुरूआत की थी तो अपने मार्गदर्शन में कुछ ऐसे पुनीत कार्य करने का संकल्प लिया, जो आने वाली पीढ़ियों को नई दिशा दे, शोध का विषय बने। हमने अयोध्या में प्रभु श्रीराम के मंदिर संघर्ष के 500 वर्षों के संघर्षकाल को एक पुस्तक-ग्रंथ के माध्यम से जनहित में लाने का संकल्प लिया, तो वहीं, माता सीताजी जी को उनके प्राकट्य-स्थल सीतामढ़ी (बिहार) में श्रीभगवती के रूप में स्थापित करने का संकल्प लिया। इन सबसे साथ ही, हमारा चिंतन रहा कि आने वाली पीढ़ी को कैसे संवारा जाए, सुसंस्कृत किया जाए और इसके लिए आवश्यक था कि हम छोटे बच्चों में कुछ अपनी संस्कृति से संबंधित विषय का बीजारोपण कर दें। मुझे लगता है कि जीवन जीने की आदर्श कला को श्रीरामचरितमानस, श्रीरामायण और श्रीमद्भागवत गीता से बेहतर और कोई नहीं समझा सकता। इसी विचार के साथ काउंसिल की एक टीम छोटे बच्चों को श्रीरामचरितमानस की चौपाई सीखाती है, उसके अर्थसहित वर्णन को समझाती है, उन्हें याद करवाती है और उन वीडियोज़ को रिकॉर्ड कर उनका रामायण मंच यू-ट्यूब चैनल के माध्यम से प्रसार करती है। यही नहीं, इन विषयों को साकार रूप देने के बाद हम कई ऐसे प्रकल्पों की शुरूआत करेंगे जो नए भारत के निर्माण में पथ-प्रदर्शक की भूमिका निभाएगा। हमारे इन सारे चिंतन को साकार रूप देने के लिए रामायण रिसर्च काउंसिल की पूरी टीम धन्यवाद की पात्र है और मेरे प्रिय शिष्य कुमार सुशांत को इस पूरे संयोजन के लिए ढेर सारा आशीर्वाद है।