अध्यक्ष

img

अध्यक्ष ,ग्रन्थ प्रकाशन समिति

चंद्रशेखर मिश्र

(सेवानिवृत्त अपर सचिव, राज्य सभा)



मेरा सौभाग्य है कि रामायण रिसर्च काउंसिल के मुख्य मार्गदर्शक श्री श्री 1008 पूज्य परंहास स्वामी सांदीपेंद्र जी महाराज जी ने मुझे काउंसिल के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी है। राज्य सभा में मैंने अपनी सेवा के दौरान अपनी संस्कृति, संस्कार, मानव सेवा, परोपकार को कभी नहीं छोड़ा। सेवा में रहते हुए पिछले 35 वर्षों से सुंदरकाण्ड का नियमित पाठ करता आ रहा हूं। शायद इसलिए श्रीहनुमान की कृपा से राज्य सभा की सेवानिवृत्ति के बाद मुझे काउंसिल में अध्यक्ष पद का दायित्व सौंपा गया है।

बतौर अध्यक्ष, मैं यही कहना चाहता हूं कि यह एक पुनीत और ईश्वरीय कार्य है। इस कार्य से जुड़ना ही अपने आप में श्रेष्ठतम है, क्योंकि यह हमारे समाज को सुसंस्कृत और देश को सांस्कृतिक बनाए रखने के लिए एक गिलहरी प्रयास है। सच है कि हम अपनी संस्कृति या संस्कार को और मजबूत करना चाहते हैं तो हम हर एक को अपनी जिम्मेवारी समझनी होगी। कौन क्या कर रहा है, इस पर सोचने से बेहतर हो कि हम क्या कर रहे हैं, इस पर मंथन करें। हम हर एक से मिलकर परिवार, परिवार से मिलकर समाज है, समाज से मिलकर ही जिला, प्रदेश और फिर एक देश की कल्पना संभव है। इसलिए जब हम स्वयं में पहल शुरू करेंगे तो देश में परिवर्तन देखेंगे।

जहां तक काउंसिल के प्रयासों का सवाल है, तो हमारा दायित्व है कि जो भी समाज में ऐसे प्रकल्प और उद्देश्य को लेकर चलें हैं, उनकी हिम्मत कायम रहे, इसके लिए उन्हें तन, मन, धन से सहयोग देना। हमें ध्यान में रखना होगा कि सहयोग केवल धन से ही नहीं होता है। आप दिनभर में दो व्यक्तियों को श्रीरामचरितमानस की चौपाई का बखान कर दें, अपने बच्चे को श्रीरामचरितमानस की चौपाई याद करवाकर रामायण मंच को भेज दें, या किन्हीं को काउंसिल के किसी प्रकल्प की जानकारी दे दें, तो यह भी अपने आप में बहुत बड़ा सहयोग है।

हमें श्रीभगवती सीताजी और प्रभु श्रीरामचंद्र के आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाना है। इसी विचार और उद्देश्य के लिए यह प्रकल्प है। हम अपनी नित्यक्रिया में जो भी कार्य कर रहे हैं, करते रहें, लेकिन रोज़मर्रा के समय में से आधे घंटे का समय अगर देश-कल्याण, समाज-कल्याण के लिए निकाल लेंगे तो इससे बड़ी पूजा दूसरी हो नहीं सकती।

आप सबों से आग्रह है कि आप काउंसिल के प्रकल्पों को भी समझें, फिर अन्य को समझाएं, जुड़ें, अधिक से अधिक लोग कैसे जुड़ सकते हैं, इस पर भी विचार करें। कोई सामाजाकि या धार्मिक कार्य अकेले संभव नहीं है। सबों की भागीदारी के बाद ही किसी कार्य की सफलता संभव है। और जब विषय संस्कृति, संस्कार को बनाए रखने का हो तो हमें चिंतनशील होना ही होगा और फिर संकल्पित होना ही होगा, क्योंकि संस्कृति है, तभी हम हैं और हमारी आने वाली पीढ़ी है।